क्या त्योहार अब समाज को जोड़ने की जगह तोड़ने का मंच बन गए हैं?
आँखों देखा सच
3 अक्टूबर 2025।
सलेमपुर, जिला देवरिया।
माँ दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन निकला था।
सैकड़ों लोग, ढोल-नगाड़े और जयकारे।
पर भीड़ में अचानक सबकी नज़र मूर्ति नं. 5 की झाँकी पर जा टिकी।
एक युवक हाथ में पोस्टर लिए खड़ा था।
पोस्टर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गुस्से वाला चेहरा था।
और उसके नीचे लिखा था:
“एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे।”
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ये संदेश किसे दिया गया?
पोस्टर का मैसेज सीधे-सीधे हिंदुओं को संबोधित करता था।
मतलब साफ था —
👉 “अगर हिंदू एक रहेंगे तो ही सुरक्षित रहेंगे।”
लेकिन असली सवाल यह है:
क्या त्योहारों के पवित्र मंच पर ऐसे नारे की ज़रूरत थी?
क्या दुर्गा विसर्जन का मकसद डर फैलाना है, या आस्था और भाईचारा?
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क्यों ये नारा खतरनाक है?
1. विभाजन की राजनीति:
इस नारे ने त्योहार की आस्था को तोड़कर इसे हिंदू बनाम दूसरों की सोच में बदल दिया।
2. डर का माहौल:
इसमें यह संदेश छिपा है कि “अगर हम एक नहीं हुए तो हम असुरक्षित हैं।”
यानी डर दिखाकर लोगों को भड़काना।
3. त्योहार की पवित्रता पर चोट:
माँ दुर्गा की विदाई का मंच, जहाँ शांति और भक्ति का संदेश जाना चाहिए था, वहाँ नफ़रत और असुरक्षा का संदेश फैलाया गया।
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त्योहार जोड़ने के लिए हैं, तोड़ने के लिए नहीं
दुर्गा विसर्जन का मकसद है —
समाज को जोड़ना
भाईचारे का संदेश देना
संस्कृति और परंपरा को आगे ले जाना
लेकिन ऐसे पोस्टर इन सब पर सवाल खड़े कर देते हैं।
त्योहार पर राजनीतिक चेहरे और विभाजनकारी नारे यह साबित करते हैं कि धर्म और राजनीति को मिलाकर समाज को गुमराह किया जा रहा है।
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मोदी की तस्वीर क्यों?
पोस्टर पर नरेंद्र मोदी की गुस्से वाली फोटो लगाई गई।
यह साफ दिखाता है कि संदेश सिर्फ़ धार्मिक नहीं था, बल्कि राजनीतिक रंग भी उसमें मिला हुआ था।
त्योहार में नेताओं की तस्वीरें और राजनीतिक नारों की कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
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असली सवाल
क्या पूजा-पाठ और विसर्जन अब राजनीति का टूल बन गए हैं?
क्या समाज को “सेफ” बनाने का रास्ता डर और नफरत से होकर जाएगा?
क्या हिंदू ही अकेले रहकर सुरक्षित होंगे, या समाज की असली सुरक्षा आपसी एकता और भाईचारे से आती है?
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निष्कर्ष — समाज को चेतावनी
सलेमपुर का यह पोस्टर सिर्फ़ एक नारा नहीं था।
यह उस सोच का प्रतीक था, जो त्योहारों की आड़ में समाज में डर और नफ़रत बोने की कोशिश कर रही है।
आज ज़रूरत है कि हम समझें:
“एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे” जैसे नारे हमें सुरक्षित नहीं बनाते।
असली सुरक्षा तब है जब हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई सब साथ खड़े हों।
त्योहार को जोड़ने का मंच बनाना होगा, तोड़ने का नहीं।