“अगर लाल झंडा न होता — तो मज़दूर अब भी ज़ंजीरों में होता”

जब दुनिया अमीरों के महल सजा रही होती है, तब कम्युनिस्ट पार्टी मजदूरों के घर बना रही होती है।

“अगर लाल झंडा न होता — तो मज़दूर अब भी ज़ंजीरों में होता”
(वो सोच जिसने कुर्सी नहीं, इंसान की इज़्ज़त मांगी)


कभी अपने आसपास देखिए…
जो आदमी सड़कों पर ईंट उठाता है,
जो खेतों में धूप में जलता है,
जो फैक्ट्री में मशीन के नीचे खड़ा होकर हमारे घरों में रौशनी लाता है —
क्या कभी सोचा है,
उसका हक किसने दिलाया?

वो आवाज़ जो पहली बार उठी थी —
वो आवाज़ थी कम्युनिस्टों की।

जब दुनिया सो रही थी,
जब गरीब को इंसान नहीं समझा जाता था,
जब मज़दूर का पसीना पानी समझा जाता था,
तब किसी ने कहा था —

“जो रोटी बनाता है, उसी को सबसे पहले रोटी मिलनी चाहिए।”

और यही सोच लेकर उठा था लाल झंडा।


कम्युनिस्ट पार्टी ने क्या सिखाया

कम्युनिस्ट पार्टी ने हमें सिखाया —
कि इज़्ज़त सिर्फ अमीरों की नहीं होती।
कि मेहनत करने वाला छोटा नहीं होता।
कि बराबरी कोई किताब का शब्द नहीं,
बल्कि हर इंसान का जन्मसिद्ध अधिकार है।

उन्होंने सिखाया कि
अगर एक बच्चा भूखा सो जाए —
तो हमारी तरक्की झूठी है।
अगर एक किसान कर्ज में डूब जाए —
तो हमारी आज़ादी अधूरी है।
अगर एक मज़दूर के हाथ छालों से भर जाएं —
तो हमारी राजनीति बेमानी है।


🔥 लाल झंडे की ताकत

लाल झंडा सिर्फ़ एक रंग नहीं है।
ये उस खून का रंग है जो मज़दूरों ने बहाया,
वो आँसू हैं जो किसानों की आँखों से गिरे,
वो उम्मीद है जो हर भूखे पेट में अभी भी जल रही है।

लाल झंडा हमें याद दिलाता है कि —

“सच्चा देशभक्त वो है, जो अपने देश के हर गरीब को इज़्ज़त दिलाना चाहता है।”


🕊️ कम्युनिस्ट पार्टी क्यों ज़रूरी है

क्योंकि जब बाकी सब दल
धर्म, जाति और कुर्सी के लिए लड़ रहे होते हैं,
तब कम्युनिस्ट पार्टी इंसान के लिए लड़ रही होती है।

जब दुनिया अमीरों के महल सजा रही होती है,
तब कम्युनिस्ट पार्टी मजदूरों के घर बना रही होती है।

जब नेता भाषणों में “विकास” बोलते हैं,
तब कम्युनिस्ट पार्टी सड़कों पर मेहनत करने वाले इंसानों की बात करती है।

कम्युनिस्ट पार्टी वो ताकत है
जो कहती है —

“न कोई ऊँचा, न कोई नीचा — सब बराबर।”

“न कोई मालिक, न कोई गुलाम — सब इंसान।”


❤️ वो जो देश की आत्मा है

कई लोग कहते हैं कि कम्युनिस्ट पुरानी सोच हैं,
पर सच्चाई ये है कि
वो ही लोग हैं जिन्होंने इस देश को इंसानियत सिखाई है।

अगर आज मज़दूर के पास छुट्टी है,
अगर आज किसान अपनी ज़मीन का मालिक है,
अगर आज मजदूरी का दाम तय होता है —
तो ये उसी सोच का नतीजा है
जो लाल झंडे ने पैदा की थी।


🔔 और आज भी…

आज जब राजनीति धर्म और नफरत में बंट गई है,
जब सच्चाई आवाज़ उठाने से डरती है,
जब झूठ तिरंगे में लिपटकर सच को दबा देता है,
तब भी कहीं न कहीं
एक लाल झंडा हवा में लहरा रहा है,
जो कह रहा है —

“अभी लड़ाई बाकी है।”


🔥 अंतिम पंक्तियाँ (दिल को छू लेने वाली)

लाल झंडा सिर्फ़ एक झंडा नहीं,
वो उम्मीद है,
वो इंकलाब है,
वो हर उस माँ की दुआ है
जिसका बेटा भूखा नहीं सोता।

क्योंकि जब हर ओर अंधेरा छा जाता है…
तो लाल झंडा ही वो आख़िरी रौशनी होता है,
जो कहता है —

“इंसानियत ज़िंदा है।”


❤️ एक पंक्ति जो दिल में रहे:

“कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता नहीं चाहती, वो सिर्फ़ चाहता है — एक ऐसा भारत, जहाँ हर इंसान बराबर खड़ा हो सके।”


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